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है कैसी ये शाम प्रिये!
दिन तो तप के बीत गया
भरा हुआ मन रीत गया
आस तेरे आने की फिर भी करती हूँ अविराम प्रिये!
है कैसी ये शाम प्रिये!
सुन कर कोयल की ये कूक
हृदय बीच उठती है हूक
कलरव भी अब इन चिड़ियों का देता कब आराम प्रिये!
है कैसी ये शाम प्रिये!
पेड़ों की ये छाँव सघन
दूर करे कब मन की तपन
प्रीत भरा मन जपता हरदम बस तेरा ही नाम प्रिये!
है कैसी ये शाम प्रिये!