भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"व्यथा गीत / श्वेता राय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्वेता राय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGee...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
छो (Sharda suman ने व्यथा / श्वेता राय पर पुनर्निर्देश छोड़े बिना उसे व्यथा गीत / श्वेता राय पर स्थानांतरि...)
 
(कोई अंतर नहीं)

11:34, 2 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण

जीवन क्षणभंगुर है अपना, तो फिर क्यों उत्साह नही।
पिघला दे जो नियत शिला को, ऐसी कोई आह नही।
आता है जब ज्वार पीर का, विपदा बढ़ती जाती है,
हृदय समेटे खुशियाँ फिर भी, होती किसको चाह नही।

नैनो में यदि अश्रु न आये, ऐसी करुण कहानी क्या।
पत्थर का जो रूप न बदले, ऐसा बहता पानी क्या।
जीवन तो बस वो जीवन है, जिसको जीे भर जी ले हम,
भय को अपना सखा बना ले, ऐसी भला जवानी क्या।

काट सके जो समय चक्र को, बनी अभी तलवार नहीं।
हर्ष पीर दोनों में बहता, आँसू का पर भार नहीं।
फूल शूल सब वन की शोभा, पतझड़ ही तो बस सच है,
आने वाले कल पर अपना, है कोई अधिकार नहीँ।

सुन्दर धरती सुन्दर अम्बर, सुन्दर ये संसार रचा।
ताल पोखरे नदियाँ झरने, सागर जैसा प्यार रचा।
रचने वाले तुमने जाने, क्या क्या जग में रच डाला,
पर जीवन सँग मृत्यु बना कर, दुख का क्यों आधार रचा।