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"होली / मैथिलीशरण गुप्त" के अवतरणों में अंतर

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17:34, 4 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण

जो कुछ होनी थी, सब होली!
धूल उड़ी या रंग उड़ा है,
हाथ रही अब कोरी झोली।
आँखों में सरसों फूली है,
सजी टेसुओं की है टोली।
पीली पड़ी अपत, भारत-भू,
फिर भी नहीं तनिक तू डोली!