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"मातॄवंदना-2 / सत्यनारायण ‘कविरत्न’" के अवतरणों में अंतर

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:::::जय जय भारतमातु मही।
 
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द्रोण, भीम, भीषम की जननी, जग मधि पूज्य रही।।
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द्रोण, भीम, भीषम की जननी, जग मधि पूज्य रही॥
 
जाकें भव्य विशाल भाल पै, हिम मय मुकुट विराजै।
 
जाकें भव्य विशाल भाल पै, हिम मय मुकुट विराजै।
सुवरण ज्योति जाल निज कर सों, तिहँ शोभा रवि साजै।।
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सुवरण ज्योति जाल निज कर सों, तिहँ शोभा रवि साजै॥
 
श्रवत जासु प्रेमाश्रु पुंज सों, गंग-जमुन कौ बारी।
 
श्रवत जासु प्रेमाश्रु पुंज सों, गंग-जमुन कौ बारी।
पद-पंकज प्रक्षालत जलनिहि, नित निज भाग सँवारी।।
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पद-पंकज प्रक्षालत जलनिहि, नित निज भाग सँवारी॥
 
चारु चरण नख कान्ति जासु लहि यहि जग प्रतिभा भासै।
 
चारु चरण नख कान्ति जासु लहि यहि जग प्रतिभा भासै।
विविध कला कमनीय कुशलता अपनी मंजु प्रकासै।।
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विविध कला कमनीय कुशलता अपनी मंजु प्रकासै॥
 
स्वर्गादपि गरीयसी अनुपम अम्ब विलम्ब न कीजे।
 
स्वर्गादपि गरीयसी अनुपम अम्ब विलम्ब न कीजे।
प्रिय स्वदेश-अभिमान, मात, सतज्ञान अभय जय दीजै।।
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प्रिय स्वदेश-अभिमान, मात, सतज्ञान अभय जय दीजै॥
 
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'''रचनाकाल : 1918'''
 
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17:50, 4 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण

जय जय भारतमातु मही।
द्रोण, भीम, भीषम की जननी, जग मधि पूज्य रही॥
जाकें भव्य विशाल भाल पै, हिम मय मुकुट विराजै।
सुवरण ज्योति जाल निज कर सों, तिहँ शोभा रवि साजै॥
श्रवत जासु प्रेमाश्रु पुंज सों, गंग-जमुन कौ बारी।
पद-पंकज प्रक्षालत जलनिहि, नित निज भाग सँवारी॥
चारु चरण नख कान्ति जासु लहि यहि जग प्रतिभा भासै।
विविध कला कमनीय कुशलता अपनी मंजु प्रकासै॥
स्वर्गादपि गरीयसी अनुपम अम्ब विलम्ब न कीजे।
प्रिय स्वदेश-अभिमान, मात, सतज्ञान अभय जय दीजै॥
रचनाकाल : 1918