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"बीड़ी पीती औरत / मनीषा जैन" के अवतरणों में अंतर

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17:08, 5 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण

दूर से देखने पर
बीड़ी पीती हुई औरत
किसी को अच्छी नहीं लगती
मगर क्या करे वह?
औरत की मर्यादा के खिलाफ लगती है वह

वह बीड़ी पीती है
दो पल सुस्ताने के लिए
नई ताजगी पाने के लिए
फूल सी खिल जाती है वह
जब भी पीती है बीड़ी
मजदूर स्त्री जब ढ़ोती है
ईटें सिर पर
तब ही घटती है उम्र उसकी
घुटने घिसते हैं थोड़े और
रोटी न मिले कोई बात नहीं
बीड़ी जरूर मिले

बिना बीड़ी पीये
पीठ पिराती है उसकी
पैर दे जाते है जबाब
तब ही लगाती है एक कश
वह जानती है अच्छी तरह
उसके फेफड़े हो रहे हैं काले
फिर भी कश लगाती है
कुछ पल जिंदा रहने के लिए
कुछ पल ठहरने के लिए
कब तलक सुलगेगी वह
भीतर ही भीतर।