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"मकड़ी का जाला / मनीषा जैन" के अवतरणों में अंतर

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17:17, 5 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण

बिलकुल सटीक जगह पर
बांध दिया गया
घर नाम के कोने से

मकड़ी के जाले की तरह
बार बार पूरते रहते हैं हम
अपना संसार मकड़ी की मानिदं

और तोड़ती रहते हैं
अपने ही पैरो की जंजीरें
और जाले के बीचों बीच
मर जाते हैं, मकड़ी की तरह

उन्हीं सात फेरों की जंजीरों में बंधी हुई
सुखाती रहती हैं
तुम्हारे दफतर जाने के बाद
तुम्हारे गीले तौलिए

और संगवाती रहती हैं तुम्हारे कमरे
ताकि शाम को जब तुम आओ
तुम्हारी सब चीजें अपने स्थान पर मिलें
बॉस की डाट खा कर आए तुम
कुछ शांत रह सको
अपना गुस्सा हम पर ना निकालो

गर्मा गरम बनाते रहे तुम्हारी रसोई
गर्म गर्म फुलके खिलाते रहे तुम्हें
जिससे तुम सो सको
चैन की नीेदं

और अगली सुबह
तैयार हो सको तुम
दफतर के लिए

और अगले दिन हम
नये जालों का ताना बाना बुन सकें
मकड़ी की तरह

और कदम बढ़ाती रहें
अपनी घटती उम्र के साथ
इसे ही अपनी नियति मानकर
बढ़ते रहे मृत्यु की ओर
बहुत धीरे धीरे धीरे।