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"घर जी इज्जत / लक्ष्मण पुरूस्वानी" के अवतरणों में अंतर
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मुड़िस चयो ज़ाल खे
हे सभाॻी, प्रिय प्राणेश्वरी
सोन चान्दीअ सां मोह घणों न रखु
खणीं अचु, पहिंजे कननि जा वाला लाहे खणीं अचु
बेशक तुहिंजे सोन में हथु विझन्दे
मूखे बि दाढो दुख आ, पर प्यारी
हीउ घर जी इज्जत जो सवालु आ
याद रखु, अॼु जो ज़मानो
घाटे जे बजट जो ज़मानो आ
तुहिंजियूं लिपिस्टिकूं, क्रीम पाउडर
मुहिंजा सिगरेट जा पाकेट ऐं बियर जूं बोतलूं
ॿारनि जी टयूशन फीस ऐं खीसे जो खर्चु
जेसि तांई
ईन्दड़ महिने जो पघार नथो मिले
सभि खर्चु
सोनु गिरवी रखी करे हलाइणो आ