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"मात / देवी नांगरानी" के अवतरणों में अंतर
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मैं तो वही हूँ
लोगों ने नज़रें बदल लीं हैं-
उन लोगों ने
जिनके लिए मैंने
अपना जीवन जीना भूल गई
चलते चलते उन पगडंडियों पर
कभी पल के लिए भी
अपने लिए नहीं सोचा
आज पीछे मुड़कर देखती हूँ
तो समझ आता है
कि ज़िंदगी की दौड़ में वे जीत गए
जिनके लिए मैंने लड़ाई लड़ी थी
और मैं
चौराहे के मोड़ पर तन्हा खड़ी
यही सोच रही हूँ-
कि क्यों कोई थकता है?
कोई क्यों टूटता है?
क्यों टूटकर बिखरता है?
बस मोड़ पर
यही सच जान पाई हूँ कि
जिंदगी ने मुझे मात दी है!