भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"नीली छतरी / रमेश तैलंग" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तैलंग |अनुवादक= |संग्रह=मेरे...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
17:39, 15 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण
कैसी रे कैसी
ये नीली छतरी?
धूप भी बरसे
पानी भी बरसे
छतरी के नीचे
भीगे जी नगरी।
छतरी के अंदर
छेद है लाखों,
दीखें तभी जब
रात हो गहरी।
छतरी किसी के
हाथ न आए,
ऊँची हवा के
बीच में ठहरी।