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"नीली छतरी / रमेश तैलंग" के अवतरणों में अंतर

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17:39, 15 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण

कैसी रे कैसी
ये नीली छतरी?

धूप भी बरसे
पानी भी बरसे
छतरी के नीचे
भीगे जी नगरी।

छतरी के अंदर
छेद है लाखों,
दीखें तभी जब
रात हो गहरी।

छतरी किसी के
हाथ न आए,
ऊँची हवा के
बीच में ठहरी।