भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हाथी का जूता / प्रकाश मनु" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रकाश मनु |अनुवादक= |संग्रह=बच्च...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
14:30, 16 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण
एक बार हाथी दादा ने
खूब मचाया हल्ला,
चलो तुम्हें मेला दिखला दूँ-
खिलवा दूँ रसगुल्ला।
पहले मेरे लिए कहीं से
लाओ नया लबादा,
अधिक नहीं, बस एक तंबू ही
मुझे सजेगा ज्यादा!
तंबू एक ओढ़कर दादा
मन ही मन मुसकाए,
फिर जूते वाली दुकान पर
झटपट दौड़े आए।
दुकानदार ने घबरा करके
पैरों को जब नापा,
जूता नहीं मिलेगा श्रीमन्-
कह करके वह काँपा।
खोज लिया हर जगह, नहीं जब
मिले कहीं पर जूते,
दादा बोले-छोड़ो मेला
नहीं हमारे बूते!