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सर्द हवा का बजा नगाड़ा,
खूब जोर से आया जाड़ा।
कोट-पैंट की फिर सुध आई,
झाँके स्वेटर, शॉल-रजाई।
मौसम की ऐसी मनमानी,
बर्फ सरीखा लगता पानी।
छोटे दिन और लंबी रातें,
खत्म नहीं होतीं अब बातें।
स्वाद चाय का लेकर गाढ़ा,
ऋतु पढ़ती है नया पहाड़ा।