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"रेलगाड़ी की खिड़की / प्रकाश मनु" के अवतरणों में अंतर

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15:36, 16 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण

अजब नजारे दिखलाती है,
अजी, रेलगाड़ी की खिड़की!

एक खेत में ढेरों तोते
मोर नाचता थर-थर-थर,
धीरे-धीरे बैल जा रहे
चिड़ियाँ उड़तीं फर-फर-फर।
गड़-गड़-गड़-गड़ बादल काले
पर किसान भी डटा हुआ है,
खेत जोतकर ही जाएगा
सोच यही, वह खड़ा हुआ है।
तेजी से ये पेड़ भागते
भाग रही जैसे सेना,
भाग कहाँ को जाएँगे ये-
पूछ रही छोटी मैना।
पीली-पीली सरसों जैसे
सोना उगा हुआ है,
बड़ा आम का पेड़ किसी
पुरखे-सा खड़ा हुआ है।

धूम मचाते, हँसते-गाते
खेल रहे खेतों में बच्चे,
कितनी सच्ची खुशियाँ उनकी
दिल कितने सच्चे उनके।
कुछ मैली-मैली झोंपड़ियाँ
मैले-मैले-से घ्ज्ञर हैं,
क्यों इनकी ऐसी बदहाली
क्यों इनके टूटे पर हैं!
देख-देखकर अजब नजारे
मन कुछ पूछ रहा है भाई,
खुशी अगर धरती पर है तो
क्यों न सबके हिस्से आई?

धीरे-धीरे रेल रुकी तो
प्लेटफार्म आया झट से,
चहल-पहल की दुनिया सारी
पास चली आई खट से।
भाग-दौड़ है, धूम-धड़ाका
‘चाय-चाय’ का शोर मच रहा,
ठंडा कहीं, कहीं पर चाट-
मेला जैसे यहाँ सज रहा।
आते-जाते, जाते-आते
जीवन के ये अजब नजारे,
हँस-हँसकर हमको दिखलाती
अजी रेलगाड़ी की खिड़की।

बहुत दिखाती, बहुत रिझाती,
देती लेकिन कभी न झिड़की-
अजी, रेलगाड़ी की खिड़की!