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"ये नाटक है / प्रकाश मनु" के अवतरणों में अंतर

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15:44, 16 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण

ये नाटक है, ये नाटक है
ये नाटक है...!
नाटक में, नाटक में भैया
नाटक है...
हंसी-खुशी का रंग-बिरंगा
नाटक है!

एक तरफ से राजा आए
एक तरफ से रानी,
राजा ऊँचे, लंबे-लंबे
रानी है अभिमानी।
रानी ने कुछ बात कही तो
राजा सुर में आए,
हाथ बढ़ाकर आसमान के
तारे झट ले आए।
रानी के बालों में गूँथे,
बोले-खुश हो रानी?
हँस दी, हँस दी, हँस दी, देखो

झट से खड़े हुए तब राजा
लंबे हाथ बढ़ाए,
हाथ बढ़कर आसमान के
तारे झट ले आए।
रानी के बालों में गूँथे,
बोले-खुश हो रानी?
हँस दी, हँस दी, हँस दी, देखो
वह रानी अभिमानी।

रानी के ही संग-संग हँसती
उसकी बिल्ली कानी,
भोंदू कुत्ता उछल रहा है
उसको है हैरानी!

परदे पर अब खुला
कथा का फाटक है!
ये नाटक है, ये नाटक है
ये नाटक है...!
हर दिन भैया नया-नया
एक नाटक है,
परदे पर ये हँसी-खुशी का
नाटक है!

एक तरफ से बबलू आया
एक तरफ से भुल्लक,
बबलू ने भुल्लक को दे दी
अपनी प्यारी गुल्लक।
गुल्लक फूटी तो दोनों ने
सारे पैसे बोए,
पैसों के अब पेड़ उगेंगे
थे सपनों में खोए।

देख रही थी किट्टी लेकिन
छिप पेड़ों के पीछे,
ढूँढ़ लिए उसने वे पैसे
दौड़ी आँखें मींचे।
किट्टी ने वे पैसे लेकर
आइसक्रीम उड़ाई,
उछली-कूदी, कूदी-उछली
हँसती घर तो आई।

अभी न निकले पेड़ अजी वे
अभी न निकले भाई?
बबलू-भुल्लक के मन में
अब होती धुक-धुक धुक है!
ये नाटक हैं, ये नाटक है
ये नाटक है...!
हँसी-खुशी का रंग-बिरंगा
नाटक है
परदे पर हर दिन एक प्यारा।
नाटक है!

रग्घू काका से अब मिल लो
प्यारे रग्घू काका,
दिल में जिनके बहता रहता
गाढ़ा रस ममता का।
रग्घु काका बना रहे थे
खूब खिलौने सुंदर,
हाथी, भालू हिरन और था
बड़ा ऊधमी बंदर।
पर मेले का दिन आया तो
उनको चढ़ा बुखार,
थे तैयार खिलौने लेकिन
काका थे बीमार।
आखिर भालू के संग-संग तब
चले खिलौने सारे,
खुद मेले में पहुँचे
हाथी, चीता, बंदर प्यारे।
बिके खिलौने सारे झटपट
भालू लाया पैसे,
रग्घू काका की आँखों में
देखो आँसू झलके।
दवा मँगाई फिर काका ने
जी उनका मुसकाया,
भालू खुश था ता-था थैया
जमकर नाच दिखाया।

मन अपना भी कितना खुश है
कैसी रब की माया,
नाचे जितने भी थे दर्शक
सबने नाच दिखाया।
सब बोले-ओ भाई,
यह तो नाटक हैं,
नाटक में नाटक यह भैया, नाटक है
परदे पर एक हँसी-खुशी का
नाटक है!

ये नाटक है, ये नाटक है
ये नाटक है...!