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"दो कैदी / शिवबहादुर सिंह भदौरिया" के अवतरणों में अंतर

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एक ही जगह रहते
मुझमें और तुम में
सिर्फ इतना फर्क है:
मैं जानता हूँ यह निरर्थक सींखचे हैं
लोहे के,
और यह बहुत बड़ा कैदखाना;
मेरे मस्तक पर
लाल चिन्ता की सरितायें बह रही हैं-
और तुम
बड़े मजे में बजा रहे हो तसला
और
गा रहे हो गाना।