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"कोल्हू / शिवबहादुर सिंह भदौरिया" के अवतरणों में अंतर

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दो
बेलनों का
चक्रावर्तित कोल्हू,
हर ईख पहले पिच् से दबती ह
धार बाँधकर रस
फिर...
खोई,
उफ्!
भट्ठी में झोंकने के लिए
तैयार रहता है-कोई न
कोई।