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मेरे पावों को
पकड़ा गति ने, घुमाया
तीन सौ पैंसठ चक्रों के बाद
खड़ा कर दिया नदी-तीरे;
यहाँ:
माटी का दिया नन्हा
धार में बहता-
धीरे-धीरे।