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"वृक्ष / श्रीप्रसाद" के अवतरणों में अंतर

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12:29, 20 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण

अंकुर मिट्टी में सोया था
सपने में खोया था
नन्हा बीज हवा ने लाकर
एक जगह बोया था

तभी बीज ने ली अँगड़ाई
देह जरा-सी पाई
आँख खोलकर बाहर आया
दुनिया पड़ी दिखाई

खाद मिली, पानी भी पाया
ऐसे जीवन आया
ऊपर बढ़ा इधर, धरती में
नीचे उधर समाया

तने, डालियाँ पत्ते आए
और फूल मुसकाए
नन्हा बीज वृक्ष बन करके
धरती पर लहराए

जीता, मरता, रोगी होता
दुख आने पर रोता
वृक्ष साँस लेता, बढ़ता है
जगता है फिर सोता

रोज शाम को चिड़ियाँ आतीं
सारी रात बितातीं
बड़े सबेरे जाग वृक्ष पर
चीं चीं चीं चीं गातीं

छाया आती, बड़ी सुहाती
सब टोली जुट जाती
तरह-तरह के खेल वृक्ष के
नीचे बैठ रचाती।