भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"चेहरा / श्रीप्रसाद" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीप्रसाद |अनुवादक= |संग्रह=मेरी...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
12:51, 20 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण
चेहरा होता गोल किसी का
चेहरा होता लंबा-सा
और किसी का ऐसा होता
लगता बड़ा अचंभा-सा
चेहरा होता उठा-उठा-सा
दबा-दबा-सा होता है
चेहरा होता हँसता-हँसता
कोई जैसे रोता है
थोड़ा गोल और कुछ लंबा
चेहरा होता ऐसा भी
मुझको सब चेहरे भाते हैं
चेहरा हो वह जैसा भी
चेहरा होता बहुत बड़ा-सा
चेहरा होता छोटा भी
पतला भी चेहरा होता है
चेहरा होता मोटा भी
अपना-अपना चेहरा देखो
झाँको शीशे के अंदर
जरा बताओ ऐसा चेहरा
बोल उठे जो खिलखिलकर
कुछ चेहरे ऐसे हाते हैं
कर बैठेंगे बात अभी
कुछ शरारती चेहरे जैसे
करने को हैं घात अभी
जैसे कोई पुस्तक पढ़ता
चेहरे को भी पढ़ते हैं
कुछ चेहरे ऐसे होते हैं
जैसे हरदम लड़ते हैं
लेकिन क्या अपने चेहरे
कोई भी पढ़ पाया है
औरों का चेहरा ही पढ़कर
सबने अर्थ लगाया है।