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"स्त्री आ स्वप्न / शारदा झा" के अवतरणों में अंतर

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स्त्री देखि सकैत अछि स्वप्न
तैं वस्तुतः इ सत्य छै जे
ओ जीबि सकैत अछि अमरबेल जकाँ
होइ केहनो विकट परिस्थिति
ओ ताइकिये लैत अछि
अन्हार मे इजोतक बाट
टाटक एकटा भुरकी
जाहि दिस सँ पइस जाइत छै
जीवनक सोंगर ओकर अंतरमोन मे
चाहे भ जाउ किछुओ
जरा दौक एसिड सँ अपन बतहपनी पर
कि मारि दौक गर्भे मे स्वर्गक लालसा मे
आ कि छीन लौ बजबाक अधिकार
मनुख होयबाक संस्कार
मुदा स्त्री तइयो स्वप्न देखैत अछि
सुन्दर भविष्यक, नेनपनक हुलासक
ओकर बात सुन' आ बूझ' बला लोकक
जहिया ओ मनुखक जननिये टा नहिं
स्वयं ईश्वर भ' जाइत अछि
कियेकि ओकरा बूझल छै
नहि छै ककरो बास आ जीबाक अबगति
ओकर अभाव मे किछु नै बचतै
आ तैं, जिबैत अछि स्वप्न,स्त्री आ मानवता
अमरलत्ती जकाँ सब युग आ सब काल मे