"फिर कमर कसो / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी" के अवतरणों में अंतर
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फिर कमर कसो निकल पड़ो जवान देश के।
तुम वही कि जो कभी चले बना के टोलियाँ,
मुसकरा रहे थे जब कि पड़ रही थीं गोलियाँ;
कर लिया विजय समर वह, मिल गयी स्वतंत्रता,
लिख गयी सुनहरे अक्षरों में वह अमर कथा।
फिर उसी तरह बढ़ो, चढ़ो विहान देश के,
फिर कमर कसो निकल पड़ो जवान देश के॥1॥
है हुआ प्रहार जो कि चीन का गिरीश पर,
वह प्रहार मातृभूमि के पुनीत सीस पर।
उस प्रहार का जवाब दो समस्त शक्ति से,
माँग देश की यही है आज व्यक्ति-व्यक्ति से।
तुम समर्थ पुत्र हिन्द-से महान देश के,
फिर कमर कसो निकल पड़ो जवान देश के॥2॥
स्वर्ग से भी प्रिय हमें हमारी मातृभूमि है,
स्वर्ग से भी प्रिय हमें हमारी पितृभूमि है।
आज उसी भूमि पर कुदृष्टि शत्रु की पड़ी,
हर जवान के लिए यह इम्तहान की घड़ी।
फिर जगो उठो अदम्य स्वाभिमान देश के
फिर कमर कसो निकल पड़ो जवान देश के॥3॥
आज देश की स्वतंत्रता तुम्हारे हाथ में,
कोटि कोटि उठ रहे कदम तुम्हारे साथ में।
माँ का दूध औ’ बहिन की राखियाँ बुला रहीं,
घर की स्वामिनी की चूड़ियाँ हैं खनखना रहीं।
आज शक्ति-पर्व है, बढ़ो जवान देश के,
फिर कमर कसो निकल पड़ो जवान देश के॥4॥
सामने पहाड़ हो कि सिंह की दहाड़ हो,
बादलों की गरज हो कि वज्र का ही वार हो।
वीर तुम रुको न, अपनी आन पर बढ़े चलो,
वीर तुम झुको न, वक्ष तान कर बढ़े चलो।
ओ’ नवीन रक्त, ओ’ नवीन प्राण देश के,
फिर कमर कसो निकल पड़ो जवान देश के॥5॥
उँगलियों पर पर्वतों को हो उठाने वाले तुम,
देवताओं को भी हो चुनौती देने वाले तुम।
क्रुद्ध देख कर तुम्हें हैं कौन जो अड़ा रहा,
हाथ जोड़ समुद्र भी स्वयं खड़ा रहा।
भृकुटि तान, धनुष-बाण लो जवान देश के
फिर कमर कसो निकल पड़ो जवान देश के॥6॥
तुम दधीचि के, शिवा, प्रताप के सपूत हो,
भीम और अर्जुन के शौर्य के सबूत हो।
ज्ञात है तुम्हारी वीरता समस्त विश्व में
तुम अमर हो वर्तमान, भूत औ’ भविष्य में
तुम अमर हो वर्तमान, भूत औ’ भविष्य में।
तुम हो मूर्त शक्ति, तेज मूर्तिमान देश के,
फिर कमर कसो निकल पड़ो जवान देश के॥7॥
राम कृष्ण बुद्ध महावीर की है भूमि यह,
गुरु नानक औ’ कबीर, गाँधी की भूमि यह।
इस पवित्र भूमि के लिए जियें मरेंगे हम,
किंतु एक इंच भी न इसकी छूने देंगे हम।
यह महान प्रण किये बढ़ो जवान देश के,
फिर कमर कसो निकल पड़ो जवान देश के॥8॥
लड़ रहे हैं हम न मात्र कुछ जमीन के लिए,
लड़ रहे नवीन मूल्य-मान्यताओं के लिए।
सिर उठा रहा जो आज फिर यह दानवत्व है,
हो रहा सशंक देख विश्व-मानवत्व है।
दनुज-तिमिर पर बढ़ो, ओ, अंशुमान देश के,
फिर कमर कसो निकल पड़ो जवान देश के॥9॥
शस्त्र जीतते न, जीतता तो सिर्फ सत्य है,
सत्य के समक्ष टिक सका नहीं असत्य है।
तुम लिये हो सत्य का ही शस्त्र जब कि हाथ में
जीत तो तुम्हारी चल रही तुम्हारे साथ में।
तुम अमर्त्य पुत्र हो, अनाशवान देश के,
फिर कमर कसो निकल पड़ो जवान देश के॥10॥
11.12.1962