भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हेंगा / कुमार कृष्ण" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार कृष्ण |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

18:10, 8 मार्च 2017 के समय का अवतरण

पेड़ को
उसकी सभी हरकतों के साथ देखना हो
तो हेंगे के पास जाओ
और उससे पूछो-
ज़मीन कितनी गरम है
हेंगा कुछ नहीं कहेगा
वह बढ़ई और किसान दोनों की ओर
इशारा करते हुए
ज़मीन को खेत में बदलते हुए
खुरों की तकलीफ़ के साथ भागता जायेगा।

पेड़ जब भी होता है हरकत में
वह तब हल होता है या हेंगा
हेंगा ज़मीन के साथ घिसने वाले
काठ का नाम है
वह हर वक़्त
बीज की जड़ों के बारे में सोचता है।

हेंगे के साथ होना
ज़मीन के साथ होना है।
पेड़ कितनी तकलीफ़ के बाद
बनता है हेंगा
बैलों को हाँकते हुए सोचता है चरनदास
और टूटी हुए रस्सियों में बटे हुए
पेड़ों को जोड़ते हुए
हेंगा चलाने लगता है।