"ख़त्म होती चीज़ें / कुमार कृष्ण" के अवतरणों में अंतर
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22:11, 8 मार्च 2017 के समय का अवतरण
वह आया था मोहिनी रूप लेकर
रंग-बिरंगे कपड़ों में
सात समंदर पार से
धीरे-धीरे बढ़ाता हुआ दोस्ती का हाथ
तब नहीं सोचा किसी ने
उसकी खूनी चोंच के बारे में
उसने ढूँढ़ी अपने लिए
सबसे सुरक्षित सबसे शानदार जगह
घुस गया वह बच्चों के स्कूली बस्तों में
वह आया था बॉल पैन बन कर
रख लिए हैं उसने अब कई-कई नाम
ख़त्म कर दिया उसने मेरी आँखों के सामने
सलेट-सलेटी का वर्षों पुराना रिश्ता
तख़्ती और क़लम की दोस्ती भी
देखते-देखते हो गयी समाप्त
बची है अगर कहीं थोड़ी बहुत
शब्द और काग़ज़ की दोस्ती
तो उसे निभा रहे हैं कुछ पुराने-पुराने लोग
फोन की घण्टी लगा चुकी है बहुत पहले
उस दोस्ती में सेंध
लोग नहीं जानते इसीलिए
पत्र में प्यार छुपाने की कला
वे नहीं जानते-
चिट्ठियों को बार-बार पढ़ने का मज़ा
वे नहीं जानते लम्बे इन्तज़ार के बाद
चिट्टी के कपाट खोलने का सुख
ख़त्म हो गया है उनके आने और जाने का सिलसिला
ख़त्म हो गया है काग़ज़ का चिट्टी बनना
रो रही हैं चिट्ठियाँ लगातार
रो रही हैं
अपनी धीरे-धीरे होती मौत पर।