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"बादल / कुमार कृष्ण" के अवतरणों में अंतर
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हमेशा नहीं होती बादल में बाढ़
जेठ की दोपहर में
जब सूखने लगते हैं पहाड़ों के चोये
छाँव बाँटने आते हैं बादल
सूरज के तन्दूर में पके हुए बादल
चलते हैं दिन-रात नंगे पाँव
कपास के फूल की तरह उड़ते हैं बादल
चुपचाप, ख़ामोश, बिना किसी शोर के
छाँव, पानी बाँटने वाले बादल कभी खुद नहीं कहते
हम हैं आग के बीज
पूरी पृथ्वी पर हर वक़्त उड़ने वाले
आग के फूल हम हैं।