भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"विभ्रम के खंडहर / योगेन्द्र दत्त शर्मा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=योगेन्द्र दत्त शर्मा |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:19, 15 मार्च 2017 के समय का अवतरण
यहां ताको, वहां झांको
जिन्दगी की व्यर्थता का
मोल आंको!
सांस की प्रत्येक सिहरन
रागिनी को
दे रही है भोर के
गंधिल निमंत्रण
ओस से भीगी हुई
धूमिल सतह पर
बीनती हैं प्रार्थनाएं
अश्रु के कण
हर थकन पर खोखली
मुस्कान टांको!
छंद की हर रेशमी
अनुभूति अब तक
मौन बन
सहती रही है यातनाएं
कस रही हैं
हरसहज आराधना को
छटपटाते
क्षुब्ध मन की याचनाएं
मरुस्थल में मोमिया
खरगोश हांको!
गंध भीतर की
नहीं पहचानता है
खोजता अन्यत्र ही
कस्तूरिया मृग
छल रही हैं वंचनाएं
हर क्षितिज पर
दूर अटके हं किसी
विश्वास पर दृग
विभ्रमों के खंडहरों की
धूल फांको!
जिन्दगी की व्यर्थता का
मोल आंको!