भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"रहने दे ! / योगेन्द्र दत्त शर्मा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=योगेन्द्र दत्त शर्मा |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:27, 15 मार्च 2017 के समय का अवतरण
रहने दे!
जिद मत कर
मौलिक ही रहने की
अपने को रौ में ही बहने दे!
निर्वासन, आत्मदाह
से बेहतर
जीने की प्रबल चाह
ढहते हैं मूल्य अगर, ढहने दे!
अनिमंत्रित, अनाहूत
शामिल हो
भीड़-भाड़ में अकूत
मन को मत तिरस्कार सहने दे!
आवश्यक दृष्टि-शोध
धारा से
जुड़ने का आत्म-बोध
प्रश्नों के शोलों को झहने दे!
मौलिकता, स्वाभिमान
थोथे हैं
युग का बदला विधान
कुंठा की आग अब न दहने दे!