भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"फूल-तक्षक क्षण / योगेन्द्र दत्त शर्मा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=योगेन्द्र दत्त शर्मा |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:29, 15 मार्च 2017 के समय का अवतरण
भूल की, पहचानने में भूल की!
सांप को डाली समझकर फूल की!
है हमें स्वीकार अपनी हार
बह गया है जब समय का ज्वार
चरमराकर टूटते पुल पर खड़े
देखते हैं हम थके, लाचार
सीपियां टूटी सिसकते कूल की!
और उड़ती धज्जियां मस्तूल की!
शेष हैं कुछ खुशबुओं के दंश
सांस में घुलता जहर का अंश
फूल-दुबके तक्षकों-से क्षण हुए
और यह मन परीक्षित का वंश
हो रहा है व्याधि अपने मूल की!
और आस्था की दरकती चूल की!
यह सहज विश्वास की लम्बी कथा
दे गई कुछ चोट, कुछ दारुण व्यथा
पूछती नम आंख, शापित सांझ से
ओस-भीगी सुगबुगाहट का पता
पर्त जिस पर जम गई है धूल की!
शेष है जिसमें चुभन कुछ शूल की!