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"एक प्रमेय यह भी / विनोद शर्मा" के अवतरणों में अंतर
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जीवन में आता है
या तो दुख
या फिर सुख
जिन्दगी जीना भी एक कला है
जिसे सिखाता है हमें दुख
और परखता है सुख
इसलिए हमें हर पल
सतर्क
कमर-कसे
और डटे रहना पड़ता है।
दरअसल हर पल
या तो हम सीख रहे होते हें
या फिर दे रहे होते हैं इम्तहान
यों दुनिया में
ऐसे लोग भी होतेहैं
जो समझ बैठते हैं
सुख को दोस्त
और दुख को दुश्मन।
ऐसे महानुभाव
या तो सोते हैं
या फिर रोते हैं।