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"मुजे़ नास्योनाल पिकासो / विष्णुचन्द्र शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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मुजे़ नास्योनाल पिकासो
में कहाँ रहस्य है:
लोहे को गला कर
कब एक चेहरा
पिकासो ने ढाला था!
लकड़ी को
तराश कर
कब पिकासो ने
रचा था
कला का एक
कोना!
सागर को
थाम कर
कब
एक देह की
लय
उकेरी थी
पिकासो ने!
पिकासो की
कार्यशाला में
अभी भी एक
नदी थमी हुई है-
रंगों का
रेखांकन
करती हुई।
युद्ध में तब
बिगड़े चेहरों
और बेचैन सीनों के साथ
पिकासो पारी में
बस गया था।
मैं अपने वक्त का
पिकासो
खोज रहा हूँ
पारी की धरती पर।