भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ताज़ा है / विष्णुचन्द्र शर्मा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विष्णुचन्द्र शर्मा |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
11:34, 17 मार्च 2017 के समय का अवतरण
सटे हैं जो पेड़
हरे खेतों को
जगा कर सुनाते हैं:
‘प्रेम ढाई आखर का
आज भी ताज़ा है।’