"कोटर में सूरज / विष्णुचन्द्र शर्मा" के अवतरणों में अंतर
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11:36, 17 मार्च 2017 के समय का अवतरण
बीते हुए दिन हैं आँख के कोटर
बीता एक सूरज वहाँ पड़ा है।
दफ्तर में सूरज ने पढ़कर वहाँ
फेंका है एक पत्र: मंगलवार वाकई
कहीं साँसों को खींचता है
भीतर ही भीतर।
भीतर एक चिड़िया ने
उजले गमकते हुए फूल की
पंखुड़ियाँ काटी हैं
सूरज पूछता रहा सारे दिन: बुधवार
का गमकता हुआ सुख
कैसा था चिड़िया?
बीते हुए दिन के कोटर में चलता रहा खेला।
राम ने रावण का बार-बार सिर
काटकर सूरज से पूछा: यहाँ
रंगमंच पर कब तक लड़ेंगे दोस्त?
रावण के विंधे हुए सिरों को उड़ाता रहा
सूरज बुधवार को
राम की माला का दाम नहीं चुका सका
सूरज मंगमंच। कर्जदार...
कोटर में खड़ा रहा...।
बीते हुए दिन का नाम गुरुवार।
गुरुवार को मेरे प्रकाशक ने कहा था:
सूरज की रोशनी में
‘पूरा हिसाब चुका दूँगा।’
आँखों के कोटरों में सूरज आया
और कहवाधर में
प्रकाशक से उलझ गया।
सूरज-प्रकाशक के बीच में मेरा दिन बीत गया।
बीते हुए सूरज की रोशनी में
मैंने यही देखा-मोटा
कसाई एक मेरे कलेजे के टुकड़े
काट रहा है ठीहे पर।
सूरज ने मेरे कलेजे का ताजा खून समेटा
और मुझ से कहा।
-देखो हिसाब चुकता हो गया है।
-देखो पाँच सालों में अब कोई पोथी मत लिखना।
-देखो गुरुवार लेखक-प्रकाशक के सौदे का दिन है।
-देखो दिन आगे भी खड़ा है प्रतीक्षा में।
बीते हुए वायदे या भोले भुलावे में सुबह से सूरज
प्राणायाम की मुद्रा में बैठा रहा।
काली एक चिड़िया कहीं लड़ती रही।
पीला एक फूल कुछ सोचकर काँपता रहा।
शुक्रवार के दिन मैं एक सुख की
प्रतीक्षा में साँस भीतर खींचे-खींचे बैठा रहा
सूरज ने कहा। सुख को होटल के बैरे ने
अभी बहुत पीटा है
सुख का चेहरा मेरे चेहरे-सा लहूलुहान है।
देखो सुख आए तो उसको कल
मेरे सामने बुलाना।
सूरज भुलावे और वायदे के
पिटे हुए दिन को लिए
चला गया।
बीते हुए दिन भर बिजली का पंखा
पंख फैलाए मेरे सीने को देखता रहा।
सीने के पके हुए बालों में पसीने की बूंदें
सैर करती रहीं।
मैंने कहा: सूरज अगर मरना है
रोज-रोज इसी तरह!
आओ हम लातिन अमरीकी देशों की ओर चलें!
रास्ते में
ह्यूगो की बताई हुई शैली से
सीखेंगे साथ-साथ स्पैनिश!
आओ मित्र सूरज
अपने अतीत के दुख को शनिवार से
यहीं कहीं दफनाएँ।
बीते हुए दिन अचानक यह ज्ञात हुआ
मैं ही नहीं झूठे वायदों पर टिका बैठा था।
माँ को भी आशा है बेटा बुढ़ौती में
मेरा हाथ थामेगा।
पत्नी को आशा है घर की हर गंदी अलमारी में
शीशे के दरवाजे लगेंगे।
बेटे को आशा है, मैं केवल सूरज की तरह
फाकेमस्त नहीं रहूँगा।
-चार कविता से