भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"देखऽ अब का होला / चंद्रशेखर मिश्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चंद्रशेखर मिश्र |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
10:31, 20 मार्च 2017 के समय का अवतरण
देखऽ अब का होला!
जवन कब्बो ना करे के
तवनो कइलीं
जहँवा गइले पाप परेला
तहँवो गइलीं
जनलस अरोस-परोस
जानि गयल टोला
देखऽ अब का होला !
कहलीं, त कहलन -
ई का कइलऽ?
गंगा के घरे जनमलऽ
गड़ही में नहइलऽ? !
का ऊ ना जनतन जे कमल -
गड़हिए में होला ?
देखऽ अब का होला !
सरग हमैं ना चाहीं
हम त पा गइलीं
केहू जरो
हम त जुड़ा गइलीं
तोहार नाँव लेके
पी गइलीं जहर
रच्छा करिहऽ भोला
देखऽ अब का होला !
उँह...!
जवन होए के होई
तवन होई
एह डरन मनई
कब ले रोई।
हमके ?
'हरि प्रेरित लछिमन मन डोला'
देखऽ अब का होला !