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बिजलियों की शिरो रेखाएँ खींच-खींच कर-
नक्षत्रों के अक्षरों में, मेरी ऊष्मिल साँसों ने
जो गीत लिखे थे-
वे अब नहीं रहे!
वही-उसी बहुत पुरानी
पगडंडी के मोड़ पर से वे गुजर रहे थे,
धूप बड़ी कड़ी थी,
लू लग गई-
बचाये न जा सके!
1969