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वे गालियां देते हैं।
किसी का कुछ लेते तो नहीं-
-देते हैं।
अभिव्यक्ति का सुख लेते हैं।
अभिव्यक्ति-
कला-जीवन का सार-सत्त्व-
उस पर बन्धन कैसा?
आपाधापी, स्वार्थ, स्पर्द्धा,
संग्रह और भोग के युग में-
श्रद्धानुसार हृदय की
ठेठ गहराई से,
जो खुल कर देते हैं-
जगत् में ऐसे केते हैं?
1968