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"ओ निगोड़े चांद / तरुण" के अवतरणों में अंतर

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13:40, 20 मार्च 2017 के समय का अवतरण

ओ निगोड़े चाँद!
तू विलासवतियों की चूड़ियों की खनन्-खनन् में-
रूपसियों की पायलों के रुनझुन का अंगराग-
घोल-घोल पी!
जूही-वनों में मुसकराती कान्ताओं के
मुक्तादन्तों पर कौंध!
नील कमलों वाले सरोवरों की-
लजवंती तरंगों के जी में जी डाल!
ढलती रातों की दूरागत वंशी-ध्वनियों में तू
नितम्बियिों की तगड़ियों में जड़े हीरों की
मनोग्रंथियों को खोल!

पैंगें भरती गुदगुदारी गोरटियों के कलकंठों से
गीतों को खोद-खोद कर डाल!
विरहिणी कामिनियों के कलेजे को
तारों-भरे आकाश-सी छलनी बना डाल!
मेंहदी-चित्रों से गूँजती कमल-कोमला
कंकण-क्वणित सुरभित हथेलियों को
अनुराग से उबाल दे!

पर, हे रजनीकान्त!
ओ रे करुणाकर-
बस, तू ग्रीष्म की रातों में सूखी-सूनी नदियों के तीर-
सुधियों में लीन-
गत-वैभव राजमहलों के नीरव-निर्जन खण्डहरों पर
न चमक!
न चमक!!

1970