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"आज, जो चाहे कहो... / तरुण" के अवतरणों में अंतर

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13:51, 20 मार्च 2017 के समय का अवतरण

आज तो यह मन भटकता-दूर-दूर, सुदूर,
है जहाँ बस रेत, सागर, चाँद, नाव, खजूर,
बैंगनी जल छौंकता-सा क्षितिज का अंगार,
आज, जो चाहे कहो, सब कुछ हमें स्वीकार!

आज मन में है न ज्वाला, ताप, या प्रतिशोध,
है हमें करना किसी का भी न आज विरोध,
स्थगित सारा कार्य-मन का आज है रविवार!
आज, जो चाहे कहो, सब कुछ हमें स्वीकार!

आज जी करता-पखेरू छोड़कर निज नीड़
जा रहा जिस ओर, जाऊँ मैं भुलाने पीड़!
नयन में फैला गगन हो, पग-तले संसार!
आज, जो चाहे कहो, सब कुछ हमें स्वीकार!

आज दृग में भर किसी का गुलमुहरिया रूप-
कनपटी पर, साँझ की सहता रहूँ यह धूप!
आज कोई भी न कुछ मुझसे करे व्यवहार!
आज, जो चाहे कहो, सब कुछ हमें स्वीकार!

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