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"खुद के विरोध में / अनिल अनलहातु" के अवतरणों में अंतर

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16:25, 20 मार्च 2017 के समय का अवतरण

क्यों होता है ऐसा
जब आदमी उठ खड़ा होता है
खुद के ही विरोध में,
 
जब उसे अपनी ही सोच
बेहद बेतुकी और भौंडी
लगने लगती है?

क्यों होता है ऐसा
जब आदमी
सुबह की स्वच्छ और ताजी हवा में
घूमने के बजाए
कमरे के घुटे हुए, बदबूदार सीलन में,
चादर में मुँह औंधा किए
पड़ा रहता है?

क्यों होता है ऐसा
जब आदमी साँपों की हिश-हिश
सुनना पसंद करने लगता है?

आखिर वह कौन-सी
प्रक्रिया है
जो उगलवा लेती है
शब्द उससे
खुद के ही खिलाफ़?

क्यों वह विवश हो जाता है
साँप की तरह
अपना केंचुल छोड़ने पर?

आदमी की आखिरी छटपटाहट
कसमसाकर
आखिर क्यों तोड़ती है
अपने ही बनाए
मर्यादा-तट को,

भागता है वह
अपने-आप से ही
गोरख (1) की हताशा लिए ।
आ क्यू (2) की उझंख
नीरवता में।



 
सन्दर्भ:
(1) हिन्दी कवि गोरख पांडे संदर्भित है।
(2) चीनी कथाकार लु शुन की कहानी "आ क्यू की सच्ची कहानी" का नायक।