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बूढ़ी मां की/हर वक्त की हरारत
के पीछे से/झांकती है साफ
उसके जिस्म को ठंडा करती बर्फ-
बर्फ जो पिघल रही है
उसके जाए अग्निबीजों की नसों में,
थकती जा रही है
मां के भीतर की आग
चौतरफा राख लपेटती
बीतते-एक-एक दिन के साथ।
किलकारियां सेता हुआ
मां का जिस्म
था सबसे गर्म
ठिठुरती रातों में तपता
गीले पर सोता पूरी-पूरी रात,
हुलसकर उठाती मां
कलेजे का टुकड़ा अपने ही,
सोख लेता कंपकंपी
उम्र का एक हिस्सा झोंककर
जलता अलाव होता जिस्म मां का।
भोरहरे से पकड़े चक्की की मूंठ
घरर...घरर दिन चढ़े तक
कूटता धान,
माघ पूस की सर्दी से रिसती नाक
और उसके मुकाबले
भीतर से निकलती भाप का लावा,
रात भर के पड़े बर्फ चूल्हे में
तोप देती फूस
धुएं में आंखें खोलकर
पूरी ताकत से और बार-बार फूंकते जाना,
लौ उठने तक
निरन्तर जीता है
लुहार की धौंकनी-सा चलता मां का जिस्म।
बीमार मां
ठंडे पानी से नहाया जिस्म
खांसी से दुहरी होती
गठरी बन-बन जाती,
पुआल की ढाल लिए/समूची सर्दी से लड़ती
और लगातार जीतती मां का जिस्म
चीथड़ों से छनकर छेदती
ठिठुरन पचाता और
गिरने से बच गए तीन दांत बजाता,
जीत का जश्न मनाता मां का जिस्म।
आधे सफेद बालों वाले बेटे की
पसलियों पर फैला देता है आंचल
अपने को उघारकर
वात से कराहता
फूस की राख सिरहाने रखकर
सेंक महसूस करता मां का जिस्म
झुर्रियों से पटा पूरा जिस्म मां का
बंद किये आंखें
सोने का एहसास कराता सबको
महसूस करता है बंधन
चांदी की चूड़ियों का।
आधे पेट सुबह का इंतजार करती
नींद से लड़ती,
कभी नहीं देखती आईना
नहीं देखपाती
फूल से ईंधन हुआ अपना जिस्म।
सिर्फ समय देखता है-
कभी नहीं मरता मां का जिस्म।
सिर्फ समय देखता है-
कभी नहीं मरता मां का जिस्म
आग पैदा करता प्यार की
एक पूरी उम्र की सर्दी से
लड़ता है। सेंक देता है
निरंतर खौलता ज्वालामुखी बनकर
रीत जाता है/बच जाता है
एक यज्ञ की राख का ढेर दिखता
मां का जिस्म।