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"रेखाएं / हरिपाल त्यागी" के अवतरणों में अंतर

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10:59, 21 मार्च 2017 के समय का अवतरण

रेखाएं-पागल हो गयी हैं
तुम्हें छूने को आतुर,
छटपटातीं, भगातीं,
बेचैन रेखाएं...

उलझ पड़तीं परस्पर और
फिर वे एक हो जातीं,
दौड़ पड़ती बावली
मासूम रेखाएं...

पगला गयी हैं सचमुच
तुम्हें छूने की धुन में।
कौन है वह, जो तड़पता
इन खरोंचों में...

रेखाएं-
पागल हो गयी हैं...