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स्व. रमापति चौधरी मैथिली, हिंदी और संस्कृत के उद्भट विद्वान थे और इनका जन्म बिहार के दरभंगा जिले के बेरि ग्राम में 23 जनवरी 1907 ईं. में हुआ था। इनकी मैथिली की रचनाएं विशेषरूप से उल्लेखनीय हैं। प्रो. हरिमोहन झा, आरसी प्रसाद सिंह वगैरह मैथिली और हिंदी के तत्कालीन कई बड़े लेखक इनके मित्र और समकालीन थे। वैदेही (तत्कालीन मैथिली की सबसे बड़ी पत्रिका) समेत कई पत्र-पत्रिकाओं में भी इनकी रचनाएं छपी थीं। हालांकि पूंजी के अभाव में उनकी कुछ ही रचनाएं पुस्तक के रूप में प्रकाशित हो सकीं (परिवार और मित्रों के प्रयासों के बदौलत)।
धृतराष्ट्र विलाप, पार्वती तपस्या (खंडकाव्य - कुमार संभवम् – पंचम सर्ग), पारिवारिक रचना (गद्य-पद्य दोनों में), 14वीं शताब्दी सँ अद्यपर्यन्त कर्ण कायस्थ हिरणी डेराक एवं वेलौंचे मूलक ब्राह्मण पुरोहित लोकनिक वंशावली (सन् 1979 तक), सप्त वर्णमाला एवं स्तोत्र एवं फुटकर रचना (संस्कृत और मैथिली में) - ये सारी स्व. रमापति चौधरी की प्रकाशित रचनाएं हैं। उनकी अप्रकाशित रचनाओं कीतलाश चल रही हैं और परिवार के द्वारा आने वाले समय में उनके प्रकाशन की भी योजना है।21 मई 1986 को 79 वर्ष की आयु में देहांत हो गया।
स्व. चौधरी की रचनाओं में धृतराष्ट्र विलाप और पार्वती तपस्या (रचनाकाल 1963-65) मैथिली लेखन के क्षेत्र मे एक अनोखा प्रयास है। धृतराष्ट्र विलाप में संजय-धृतराष्ट्र संवाद के जरिये महाभारत युद्ध की कहानी का काव्यात्मक, लयबद्ध वर्णन है, वहीं पार्वती तपस्या में कुमार संभवम् के पंचम सर्ग को काव्यात्मक, लयबद्ध तरीके से मैथिली मे रचा गया है।
वंशावली में लेखक के गांव और आसपास के कायस्थ और ब्राह्मण परिवारों का वर्णन है वहीं सप्त वर्णमाला में लेखक ने बच्चों को ककहरा सिखाने के लिहाज से सहज पद्य में अ से क्ष, त्र, ज्ञ तक रामायण, महाभारत, कृष्णलीला, गीतासार, दुर्गा सप्तशती, गांधी जीवनचरित, भारतवर्णन जैसी सात कविताओं की मैथिली मे रचना की है। इसके अलावा पारिवारिक रचना मे जीवन के विभिन्न मोड़ पर आए ऊंचे-नीचे क्षणों का पद्यात्मक वर्णन है।