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"वसीयत / कर्मानंद आर्य" के अवतरणों में अंतर
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सबने कहा
वह आकाश सी है
मैं बादलों के पार चला गया उससे मिलने
सबने कहा वह झील सी है
मैं पंडुकों की तरह तैर आया नदी
किसी ने कहा वह ओस की पहली बूंद की तरह है
मैं हथेलियों पर इकट्ठा करता रहा पराग
किसी ने कहा वह हार की तरह लगती है
मैंने दुलार पा लिया खुद में
किसी ने कहा धनिये के फूल की तरह जामुनी है वह
मैं भौरें की तरह खोया
किसी ने कहा वह नींद है, किसी ने कहा हँसी
किसी ने कहा वह चाँद की चिकनाई है
किसी ने कहा मलहम
मैंने उसे कई बार देखा है
गरीबी में वह और भी सुन्दर दिखाई देती है