भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"70 / हीर / वारिस शाह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
10:30, 31 मार्च 2017 के समय का अवतरण
हीर जाय के आखदी बाबला वे तेरे नाम तों घोल घुमाइयां मैं
जिस अपने राज दे हुकम अंदर सांदल बार दे विच खिडाइयां मैं
लासां पट दियां पाए के बाग काले पींघां शौक के नाल पिंघाइयां मैं
मेरी जान बाबल जीवे ढोल रांझा माही महीं दा ढूंड लिआइया मैं
शब्दार्थ
<references/>