भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"133 / हीर / वारिस शाह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
11:08, 31 मार्च 2017 के समय का अवतरण
किस्सा हीर नूं तुरत सहेलियां ने जा कन्न दे विच सुनाया ई
तैनूं मेहना चाक दा दे कैदो उस परहे विच शोर मचाया ई
बाग ढोल हराम शैतान देजी डंका विच बजार दे लाया ई
एह गल जे जाऊसी अज खाली तूं हीर क्यों नाम धराया ई
कर छडनी इसदे नाल ऐसी सुने देस जे कीतड़ा पाया ई
वारस शाह अपराधीयां रैहम नाहीं लंडे रिछ ने मामला चाया ई
शब्दार्थ
<references/>