भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"245 / हीर / वारिस शाह" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

17:24, 3 अप्रैल 2017 के समय का अवतरण

खाब रात दा जग दियां सभ गलां धन माल नूं मूल ना झूरिए नी
पंज भूत विकार ते उदर पानी नाल सबर संतोख दे पूरिए नी
एहो दुख ते सुख समान जाने जेहे शाल मशरू तेहे भूरिए नी
भोग आतमा दा रस कस त्यागो वारस गुरु नूं कहे वडूरिए नी

शब्दार्थ
<references/>