भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"375 / हीर / वारिस शाह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:42, 5 अप्रैल 2017 के समय का अवतरण
भला दस खां जोगिया! यार साडा हुण केहड़ी तरफ नूं उठ गया
वेखां आप हुण केहड़ी तरफ फिरदा अते मुझ गरीब नूं कुठ<ref>मार गया</ref> गया
रूठे आदमी घरां विच आन मिलदे गल समझ जा बधड़ी मुठ<ref>कमज़ोर हो जाना</ref> गया
घरां विच पैंदा गुनां सजनां दा यार होर नाहीं किसे गुठ गया
घर यार ते ढूंढ़दी फिरे बाहर किते महल ना माड़ियां उठ गया
सानूं चैन आराम ते सबर नाहीं सोहणा यार जदोकणा रूठ गया
शब्दार्थ
<references/>