भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"535 / हीर / वारिस शाह" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

15:37, 5 अप्रैल 2017 के समय का अवतरण

जोगी रख के अणख दे नाल गैरत कढ अखियां रोह थी फुटया ई
एह हीर दा वारसी ही बैठा चा डेरयों सुआह विच सटया ई
सने जुतियां चैंक दे विच आवे साडा धरम ते नेम सभ पटया ई
लुट पुट के माल नखुटया ए कुट फाट के खोह विच सुटया ई
खेड़ा बोलदा नीर पलट अखी जेहा बानिया शहर विच लुटया ई
पकड़ सैदे नूं नाल फाहुड़ियां दे चोर यार वांगूं ढाह कुटया ई
दोवे बन्ह बांहां सिरों लाह पटका गुनाहगार वांगूं पकड़ छटया ई
शाना<ref>कंधे</ref> भंन के कुट चकचूर कीता लिंग भन्न के संघ नूं घुटया ई
वारस शाह खुदाए दे खौफ कोलों साडा रोंदयां नीर नखुटया ई

शब्दार्थ
<references/>