भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आपने मनऽ सें / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर' |अनुवादक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:49, 5 अप्रैल 2017 के समय का अवतरण

जागऽ जागऽ हो किसान भैया अपने मनऽ सं
आपने मनऽ सं हो भैया आपने मनऽ सं।
जागऽ-जागऽ हो...।

सब किसान मिली खेती करबै, बुनबै गेहूॅ-धनमा
दाल-रोटी भरपेट खाइकं, होली मं गैबैं गनमा
भूट्ठा खेतऽ मं मचनमा आपने मनऽ सं।
जागऽ-जागऽ हो...

सुबहे जगबै, रात केॅ सूतबै, दिन भर करबै काम
मेहनत सेॅ हम्में नैं डरबै, लहू बहै चाहे घाम,
हमरऽ खेते बाबा धाम भैया आपने मनऽ सं
जागऽ-जागऽ हो...।

आब नै सहबै हम्मं भैया विदेशी अपमान
जनसंख्या पर रोक लगैबै दूयेगो सन्तान
दोनों पढ़तै सुबहो-सॉझ, भैया आपने मनऽ सं
जागऽ-जागऽ हो...

आतंकी सेॅ गाँव-शहर मं फैली गेलै दंगा
रोक लगावऽ हेकरा पेॅ सब तभीये रहभे चंगा
बोलऽ-बोलऽ इन्कलाब भैया आपने मनऽ से
जागऽ-जागऽ हो...।