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माय गे रस-गंध तोंहीं सरस स्वर-लय छंद तोंहीं
माय गे....
तों जहाँ नै माय राजै छैं वहाँ कुच-कुच अन्हरिया
तों जहाँ भी छैं वहाँ दिन-रात नाचै छै इंजोरिया
लोक रोॅ आलोक तोंहीं नन्द रोॅ आनन्द तोंहीं
माय गे...
तों जहाँ कोयल वहीं मस्ती मँ पंचम तान छेड़ै
संग जे वीाा छिकौ झंकर भरि मन-प्राण छेड़ै
सृष्टि रोॅ संगीत नित नवगीत रोॅ मकरंद तोंहीं
माय गे...
छैं अमर विद्या सरस सुरसरित अमृत धार तोरे
बेर शबरी रोॅ मधुर छौ हाथ में पतवार तोरे
‘राज’ हंसोॅ पर विभाषित शब्द-शब्द सुगंध तोंहीं
माय गे....