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तुलसी तोहें राष्ट्रदीप में, बाती रं बरले छो
आरु हिमालय के चोटी पर, थाथी रं धरले छो
लौ तोरोॅ पाबी के छौं, लवलीन जगत युग-धारा
जनमानस लेली तोरोॅ मानस, बनल्हौं धु्रवतारा
अँधियारी सें सदा जूझतें, रहल्हौं तोरोॅ बाती
बन्धन काटी केॅ राती के, देलखौं भोरकोॅ पाती
मेठोॅ भी हेठोॅ में आबी के, तोरोॅ गुण गाबै
तोरोॅ उजियारी में, तोरोॅ झंडा के लहराबै
मानस के तोंय हंस सरोवर में, कमलोॅ के पाँती
आर्यभूमि के महाप्राण तोंय, नीलगगन के स्वाती
किरिन-किरिन के पुंज, गूँज तोरोॅ पुरबोॅ के लाली
तोरोॅ आभा सें आभासित छौं, छैलोॅ उजियाली
छौरोॅ करै लेली पापोॅ के, तपी-तपी अड़ले छो
आरू हिमाचल के चोटी पर, थाथी रंग धरले छो