भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मैली हुई चनाब / हरकीरत हीर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरकीरत हीर |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatNaz...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

14:09, 10 अप्रैल 2017 के समय का अवतरण

एक सन्नाटा सा तारी है
रह-रह कर इक चीख़ उभरती है
मेरी ही नज़्मों का अट्टाहस है मेरे कानों में
ये कौन ख़रीद लाया है घुँघरू मेरे लिए
अय औरत!
तू सिर्फ़ जिस्म की भूख के सिवाय कुछ नहीं
या तो तू उतार दे देह से अपने कपड़े
या सी ले लबों में अपनी मुहब्बत
आज़ फ़िर रात रोई है
सुब्ह के गले लगकर
कहीं कोई इक पाक सा लफ़्ज़
ज़िब्ह हुआ है
आज मुहब्बत की चनाब
मैली हुई है