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"एकदिन / अजित सिंह तोमर" के अवतरणों में अंतर

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23:16, 17 अप्रैल 2017 के समय का अवतरण

बहुत दिन बाद
मिलने पर पूछा उससे
क्या तुम्हें भी आवाज़ मोटी लगती है मेरी
याददाश्त पर जोर देकर सोचते हुए
उसनें कहा हाँ थोड़ी भारी है
मैंने कहा एक ही बात है
इस पर बिगड़ते हुए वो बोली
एक ही बात कैसे हुई भला
आवाज़ हमेशा भारी या हलकी होती है
मोटी या बारीक नही
मोटा आदमी हो सकता है
बारीक नज़र हो सकती है
तुम्हारी आवाज़ भारी है
मैंने कहा फिर तो तुम्हारे कान भी थकते होंगे
उसनें कहा नही
मेरा दिल थकता है कभी कभी
मैंने कहा कब थकता है दिल
लम्बी सांस लेकर उसने कहा
जब तुम्हारी आवाज़ भारी से मोटी हो जाती है
तब तुम्हारी नजर बेहद बारीक होती है
ये सुनकर मैं हँस पड़ा
उसने कहा तुम्हारी हँसी भारहीन है
मैंने कहा कब तौली तुमने
उसने कहा
जब तुम उदास थे।